Wednesday, September 29, 2010

हास्य कलाकार महमूद

हिंदी फिल्मों में महमूद ने हास्य कलाकार के तौर पर उस दौर में जगह बनाई थी जब हास्य को प्रमुखता नहीं दी जाती थी. कामेडी की नयी परिभाषा गढ़ कर हास्य को फिल्म के अहम तत्व के तौर पर स्थापित करने वाले महमूद के आगे नायक भी आगे बेअसर प्रतीत होते थे.
एक अभिनेता का पुत्र होने के बावजूद महमूद के लिए फिल्मी सफर आसान नहीं रहा. पैर जमाने के लिए छोटे मोटे काम, छोटी छोटी भूमिकाएं करने के बाद अंतत: महमूद को फिल्म ‘परवरिश’ से पहचान मिली. इसके पहले उन्होंने ‘दो बीघा जमीन, प्यासा, जागृति, सीआईडी’ जैसी फिल्मों में छोटी भूमिकाएं की.
‘परवरिश’ में उन्होंने उस समय के प्रमुख सितारे राजकपूर के भाई की भूमिका की थी. इस फिल्म ने उनकी हास्य प्रतिभा को उभारा और हिंदी फिल्मों को ऐसा कलाकार मिल गया जिससे बाद में नायक भी ‘खौफ’ खाने लगे. महमूद की लोकप्रियता का यह आलम था कि उनके चरित्र को ध्यान में रखकर कहानी लिखी जाती थी और वह चरित्र फिल्मों का अभिन्न हिस्सा होता था.
महमूद के हास्य में स्वाभाविकता थी जिसके समय और पैनेपन को देखकर दर्शक रोमांचित हो जाते थे. एक समय उनका नायकों से ज्यादा रसूख था.
दर्शकों की नब्ज पर पकड़ रखने वाले महमूद ने एक से बढ़कर एक कामेडी फिल्में दीं. किशोर कुमार और सुनील दत्त के साथ ‘पड़ोसन’ हो या शोभा खोटे के साथ ससुराल, जिद्दी या लव इन टोक्यो हो, महमूद दर्शकों को हंसाते रहे.